मंगलनाथ की पानी पूरी ।

एक भारतीय स्नेक जिसे भारत के कोने-कोने में भिन्न-भिन्न नामों से सम्बोधित किया जाता हैं। देखा जाये तो हर उम्र के दायरे में खाये जाने वाली चीज़ बढ़ती हुयी उम्र लड़के-लड़कियों में कुछ ज्यादा ही चर्चित होती हैं। पार्टी के नाम पर किसी नुक्कड़ के कोने पर लगे एक ठेले पर जा कर कहना, “भैया एक प्लेट पानी पूरी खिलाना जरा।” का आनंद ही कुछ और हैं ।

उसमे भी अगर आप अपने किसी मित्र के साथ गए हो तो फुले हुए मुँह में रखे एक पुलके के साथ उसकी ओर देखना और आँखों ही आखों में पूछना “क्यों मैंने न कहा था यही सबसे सवादिस्ट पानी पूरी खिलाते हैं, मान गए ना अब तो मुझे और मेरी तरजीह को।” की बात ही कुछ और हैं।

अगर बहुत वक़्त से आप उस ठेले पर जाओगे तो आपका उस खिलाने वाले के एक रिश्ता सा कायम हो जाता हैं जिससे होता यह हैं की जब भी आप उसके वहाँ जाओगे तो उसके मुँह पर आपको देख के मुस्कराहट आजायेगी जैसे कह रहा हूँ “आईये आईये बहुत दिनों बाद आये इस बार तो।”

आज का दिन कुछ ऐसा ही था जब किसी दोस्त के व्यस्त रहने से उसके साथ घूमने की योजना तो असफल हो गयी फिर बस बहुत देर की कश्मकश के बाद जब में किसी बाज़ार में कुछ खाने निकला तो पाया की पसंद तो कुछ भी नहीं आरहा, बस यहाँ से वहाँ अकेला घुमा जा रहा हूँ, साथ ही ना कुछ खाने की इच्छा हो रही थी। जैसे तैसे किसी दुकान पर जा कर कुछ लेने गया की मन बोला “चल यहाँ से भी” पैसे जेब मैं रख कर अपनी गाड़ी ले कर चल दिया किसी और ठिकाने।

फिर याद आया की घर की और पड़ने वाले रास्ते में एक पानी पूरी वाला ज़रूर होगा जिससे मिले भी अरसा हो चला हैं, आओ आज उससे मिला जाये और कुछ पानी पूरी के चटकारे चखे जाये। उस लड़के का नाम मंगलनाथ था। वही ख़ुशी उसकी आखों में, वही मुस्कराहट मुझे देख के उसे हुई जैसे वो खुश हो गया हो मुझे देख कर । उसे देख कर खैर हैरान मैं भी हो चला की आधा घंटा जिस बाजार में घूमने के बाद भी जितना अच्छा मुझे नहीं लगा उतना इस ठेले पर आकर लगा, और लगा की मन प्रसन्न हो गया । फिर क्या था लग गया क़तार में मैं भी सबके साथ हाथ में लिए एक प्लेट और आज एक नहीं दो प्लेट खायी गयी। एक जश्न की तो एक आत्मा की ख़ुशी देख कर।

आखिर में जब पपड़ी की बात आयी तो मुझे उसकी एक आदत याद आ गयी, बाकि लोगो की तरह वो मुझे कभी एक पपड़ी नहीं खिलाता, बल्कि दो पपड़ी के बीच चटपटे आलू का मसाला, नींबू का रस, काबुली चने, प्याज और धनिया से सजाकर मुझे देता हैं और देते वक़्त उसकी यही आदत जैसे मुझसे कहती हो “जल्दी वापिस आईयेगा भैया जी”। और पैसे देते हुई मुस्कुराया में भी अपनी मोटर गाड़ी उठाया और चल पड़ा अपने घर की और।

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42 thoughts on “मंगलनाथ की पानी पूरी ।”

    1. Hahaha😁😁😹
      Agar esa hain toh maafi chahte hain, lekin koi baat Nahi kal sham tak khaa lena tum bhi Mona👻🤓

      Pictures toh acche hain aur Hindi me jo dikh raha hain wo? 👻

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      1. Ha haa! Welcome! On the contrary, you set the mood with yours because पानीपूरी का असलीमज़ा तो हिंदी में चस्का लेने का है! मंगलनाथजी से कहिएगा एक प्लेट हमारे लिए लगायें ना!

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      2. शुक्रिया जनाब!
        हमें भी M P की हिंदी ज़माने से tirai किये ना हैं! हमें भी बहुत अच्छा लगा की आप हमार साथ लोकल भाषा बोलत हैं।

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