बुखार और तीन औरतें।

वैसे मुझे इतनी किसी की याद आने की आदत तो नहीं,
खुश होता रहा ज़िन्दगी भर जब किसी इंसान की जरुरत न लगी।

मगर उस दिन जब भट्टी में मेरा बदन
मेरा जी जलता हुआ आँखों से पानी से भवंडर धुंधलाया,
कमजोरी और भुखार में मानों में पूरा सिमट आया।

आँखों में भरी लहरों को थामें रखे मुझे यह वहम आया,
की तीन औरतों का ज़िक्र सीधा-सीधा मेरे जहन में।

एक थी मेरी माँ जो मेरे माथे की गर्मी को सोखा करती
जलता चाहे मैं रहता अंदर ही अंदर ,
मगर तड़पता मुझे देख आँखे उसकी भिगोया करती।

फिर आयी मेरी बेस्ट-फ्रेंड जो हमेशा मुझसे वैसे तोह प्यार बाँटा करती,
मगर जब ना रखू अपनी सेहत का ख़्याल तो आधी रात को भी फ़ोन लगा कर डाँटा करती।

फिर आखिर में आयी वो जिसकी याद में आँसू बह गए लगकर मेरे होंठों पे,
ता-उम्र न भूलूँगा वो मोहब्बत, और यादों में देता रहूँगा उसी को “श्रेय..”।

-SumitOfficial
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